लेखक के बारे में

विलियम डगलस (1898-1980) मिनीसोटा के मेन में जन्मे थे। इंग्लिश और इकोनॉमिक्स में बैचलर ऑफ़ आर्ट्स के साथ स्नातक के बाद, उन्होंने याकिमा में हाई स्कूल में दो साल शिक्षण देना शुरू किया। हालांकि, उन्हें इससे ऊब आ गया और उन्होंने एक कानूनी करियर शुरु करने का फैसला किया। वे येल में फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट से मिलकर उनके सलाहकार और दोस्त बन गए। डगलस व्यक्तिगत अधिकारों के प्रमुख प्रचारक थे। वे 1975 में सेवानिवृत्त हो गए थे जिसकी अवधि 36 साल थी और वे अदालत के इतिहास में सबसे लंबे सेवाकाल वाले जस्टिस बने रहे। निम्नलिखित अंश विलियम ओ. डगलस द्वारा लिखी "ऑफ़ मेन एंड माउंटेन्स" से लिया गया है। Deep Water में बताया गया है कि जब विलियम डगलस एक छोटे बच्चे थे तब उन्हें एक स्विमिंग पूल में तैराकी में लगभग डूब जाने का अनुभव हुआ था। इस निबंध में उन्होंने अपनी जल के भय की बात की है और उसके बाद, वह अंततः इसे कैसे पार किया। 

Deep Water  in Hindi

Deep Water  (in Hindi: A Review of the Translation)
ऐसा तब हुआ जब मैं 10 या 11 वर्ष की आयु का था। मैंने तैराकी सीखने का निश्चय किया था। याकिमा में वाई. एम. सी. ए. में एक पूल था, जो बिल्कुल इसी प्रकार के अवसर का प्रस्ताव दे रहा था। याकिमा नदी खतरों से भरी थी। माँ लगातार इसके विरुद्ध आगाह करती थी, और नदी में डूबने की हर घटना का विवरण मुझे याद दिलाती रहती । लेकिन वाई. एम. सी. ए. पूल सुरक्षित था। यह उथले सिरे की तरफ केवल दो या तीन फीट गहरा था, यद्यपि दूसरे सिरे पर यह 9 फीट गहरा था, बहाव निरन्तर चलने वाला और धीमा था। मैंने पानी में तैरने के पंखों का जोड़ा लिया और पूल पर चला गया। मुझे उसमें नंगे जाने और अपनी पतली टाँगे दिखाना पसन्द नहीं था। परन्तु मैंने अपने अभिमान पर नियन्त्रण पा लिया और ऐसा किय।

वैसे आरंभ से ही मुझे जल से घृणा थी। यह घृणा शुरू हुई जब मैं तीन या चार वर्ष का था और मेरे पिताजी मुझे कैलीफोर्निया समुद्र तल पर ले गए। वे और मैं दोनों साथ – साथ समुद्री फुहारों के बीच खड़े थे। मैंने उनको जकड़ कर पकड़ लिया, फिर भी लहरों ने मुझे नीचे भूमि पर गिरा दिया और मेरे ऊपर से बह गई। मैं पानी में दफनाया हुआ था। मुझे साँस नहीं आ रहा था। मैं भयभीत था। पिताजी हँसे, पर लहरों की शक्ति का मेरे हृदय में आतंक छा गया था।

वाई.एम.सी.ए. के तरणताल के परिचय ने दुःखद यादों को पुनर्जीवित कर दिया और बचपन के डर को जगा दिया। पर कुछ देर में ही मुझमें आत्मविश्वास आ गया। अपने नए जल – परों को पहने मैंने हाथ – पैर मारना प्रारंभ किया और दूसरे लड़कों की नकल करके सीखने का प्रयत्न किया। अलग – अलग दिनों में मैंने तीन – चार बार ऐसा किया और अभी आत्मविश्वास आना प्रारंभ ही हुआ था कि तब एक दुर्घटना हो गई। मैं ताल पर गया जब कोई और वहाँ कोइनहीं था। जल शांत था और टाइल लगा हुआ तल स्नान के टब की भाँति सफेद और स्वच्छ था। अकेले अंदर प्रवेश करके मैं डर रहा था, अतः अन्यों की प्रतीक्षा करते हुए मैं तालाब के एक तरफ बैठ गया।

मुझे वहाँ अधिक समय नहीं हुआ था तभी वहाँ एक सम्भवतः अठारह वर्ष का पहलवान – सा लड़का आया। उसकी छाती पर घने बाल थे। वह शारीरिक सुन्दरता का उदाहरण था, जिसकी टाँगों एवं भुजाओं पर उभरी हुई माँसपेशियाँ दिखाई देती थीं। वह चिल्लाया,“ हे पतलू!, तुम्हें डुबकी लगाना कैसा लगेगा?” इसके साथ ही उसने मुझे उठाया और गहरे सिरे में उछाल कर फेंक दिया। मैं बैठी हुई मुद्रा में गिरा, पानी निगल गया और तुरन्त तल पर जा पहुँचा। मैं डर गया था, परन्तु फिर भी भय से विवेकहीन नहीं हुआ था। नीचे की ओर जाते समय मैंने योजना बना ली थी। जब मेरे पैर तल से टकराएँगे, मैं बड़ी छलाँग लगाऊँगा, सतह पर आकर सपाट लेट जाऊँगा और हाथ – पैर मारकर तैरता हुआ पूल के किनारे पहुँच जाऊँगा।

नीचे का रास्ता बड़ा लम्बा लग रहा था। वो नौ फुट, नब्बे फुट की तरह लग रहे थे और इससे पहले ही मैं जमीन छू लूं इससे पहले ही मेरे फेफड़े फटने लगे थे। पर जब मेरे पैर जमीन पर लगे, मैंने अपनी पूरी ताकत जुटाई और अपने ख्याल से मैंने ऊपर की ओर एक बड़ी – छलांग लगायी। मैंने सोचा कि मैं कार्क की तरह उछल कर सतह पर आऊँगा, इसके बजाय मैं धीरे – धीरे ऊपर आया। मैंने आँखें खोली तो पानी के अतिरिक्त कुछ न था- ऐसा पानी जो कुछ मैले पीले रंग का था। मैं घबराते हुए आगे बढ़ा और ऊपर आया, जैसे कि किसी रस्सी को पकड़ना चाहता हूँ मेरे हाथ सिर्फ पानी ही लगा। मेरा दम घुट रहा था। मैंने चीखने की कोशिश की पर कोई आवाज बाहर नहीं आयी। फिर मेरी आँखें और नाक पानी के बाहर आया पर मेरा मुँह नहीं।

मैंने पानी की सतह पर संघर्ष किया, पानी निगला और मेरा दम घुट गया। मैंने अपनी टाँगें ऊपर लाने का प्रयत्न किया। पर वे मृत भार की तरह लटक गईं, उनमें लकवा हो गया और वे मुड़ नहीं सकी। एक बड़ी शक्ति मुझे नीचे खींच रही थी। मैंने चीख मारी, पर केवल पानी ही मेरी चीख सुन सका। मैं ताल की तली पर वापस जाने की लंबी यात्रा शुरू कर चुका था। मैं निरन्तर नीचे और नीचे जाता रहा । मैंने अपनी आँखें खोलीं। पीली चमक वाले पानी के अतिरिक्त कुछ नहीं था – गहरा पानी जिसमें से होकर कोई देख नहीं सकता था। और फिर मुझे पूर्ण रूप से दहशत ने जकड़ लिया, यह ऐसा भय था जिसमें सूझ – बूझ नहीं रहती, भय जिसमें कोई नियन्त्रण नहीं रहता, भय जिसने उसको अनुभव नहीं किया, उसे समझ नहीं सकता। मैं पानी के नीचे चीख रहा था। मैं पानी के नीचे शक्तिहीन था – स्तम्भित, भय से कठोर, यहाँ तक की मेरी चीखें मेरे गले में जम गई थीं। केवल मेरा दिल और मेरे सिर की धमक बताती थी कि मैं जीवित हूँ।

Deep Water
Deep Water Summary in English and Hindi
Deep Water Solution


जिस समय आतंक छाया हुआ था, मुझे एक युक्ति सूझी। जब मैं तली से टकराऊँ, मुझे कूदना याद रहना चाहिए। आखिर मुझे अपने नीचे टाइलें महसूस हुईं। मेरे पैर की अंगुलियाँ उन तक पहुँची जैसे वे टाइलों को अचानक ही पकड़ना चाहती हैं। मैं पूरी शक्ति से कूदा। लेकिन कूदने से कोई अंतर नहीं आया। मेरे चारों ओर पानी स्थिर था, मैं रस्सियों, सीढ़ियों, जल – पंखो की तलाश करता रहा। पानी के अलावा कुछ नहीं था। पीले पानी की बहुत बड़ी मात्रा मुझे पकड़े हुए थी। भयंकर आतंक ने मुझे और जोर से जकड़ लिया। बिजली के बड़े आवेश की तरह आतंक ने मुझे डर से हिलाया और कैंपाया। मेरी बाँहें हिलती नहीं थीं। मेरी टाँगें हिलती नहीं थीं। मैंने सहायता प्राप्त करने के लिए संदेश भेजने का प्रयत्न किया, माँ को बुलाने का प्रयत्न किया। कुछ नहीं हुआ।

मैं और तब, विचित्र बात थी, प्रकाश हो गया। मैं डरावने पीले पानी से बाहर आ रहा था। कम से कम मेरी आँखें आ रही थीं। मेरी नाक भी लगभग बाहर थी फिर मैं तीसरी बार नीचे की ओर चल पड़ा मैंन हवा खींचनी चाही पर पानी अंदर गया। पीली रोशनी बुझने लगी थी। तब सारे प्रयत्न थम गए। मुझे चैन आ गया। मेरी टाँगें भी शक्तिहीन अनुभव कर रही थीं, और मेरे दिमाग पर अँधेरा सा छा गया था। इसने डर से छुटकारा दिलाया, इसने आतंक को मिटा दिया, अब कोई घबराहट न थी। सब कुछ निःशब्द और शांत था। डरने के लिए कुछ न था। यह अच्छा था… उनींदा होना… सो जाना… अब छलांग लगाने की जरूरत न थी… इतना थक चुका था कि छलांग भी न लगा सकता था… अच्छा है आराम से कोई उठाकर ले जा रहा था… मुक्त आकाश में बढ़ने के लिए… मैं किसी नाजुक हाथों में था… माँ के जैसे नाजुक हाथों में… अब मुझे सोना ही होगा…।

मैं विस्मृति अर्थात् सब कुछ भूलने की सीमा में चला गया हूँ और जीवन का पर्दा गिर गया है। अगली बात जो मुझे याद है वह है कि मैं पूल के पास पेट के बल उल्टियाँ करता हुआ लेटा था। जिस लड़के ने मुझे उसमें फेंका था वह कह रहा था,” लेकिन मैं तो केवल मजाक कर रहा था। ” किसी ने कहा, “ बच्चा तो लगभग मर गया था। अब सब ठीक हो जाएगा। चलो हम उसे लॉकर रूम में ले चलें।” कई घण्टों के बाद मैं घर गया। मैं कमजोर हो गया था और काँप रहा था। जब मैं बिस्तर पर लेटा तो मैं काँपने और रोने लगा। मैं उस रात खा नहीं सका। कई दिनों तक मेरे दिल में भय रहा। थोड़े से परिश्रम से मैं घबरा जाता था, मेरे घुटने काँपने लगते थे और मुझे उल्टी आने को होती।“

मैं उस ताल पर कभी वापस नहीं गया। मैं पानी से डरता था। जहाँ भी हो सकता, मैं उससे बचने का प्रयत्न करता। कुछ वर्षों बाद मैंने झरनों के पानी को देखा। तब मैं उसमें जाना चाहता था और जब भी मैंने ऐसा किया चाहे वह टीटन या बंपिंग नदी को चलकर पार करना हो या गोट रॉक्स की गर्म झील में नहाना हो वह आतंक जो ताल में मुझे वशीभूत कर चुका था। वापस मेरे पास लौट आता था। मैं पूरी तरह इसके वश में हो जाता था। मेरी टांगें संज्ञाशून्य हो जाती थीं। एक बर्फीला भय मेरे दिल को जकड़ लेता था।

आने वाले वर्षों में भी यह अक्षमता मेरे साथ बनी रही। मेन झील पर डोंगी में बैठकर साल्मन मछली पकड़ना, जो झील के एक ऐसे भाग में रहती थी जो लगभग या पूरी तरह भूमि से घिरा हुआ था, न्यू हैम्पशायर में ताजे जल में रहने वाली बास मछली पकड़ना, डिशूट में ताजा पानी में रहने वाली सामान्य मछली ट्राउट पकड़ना, ऑरिगॉन में मेटोलियस मछली पकड़ना, कोलंबिया में साल्मन मछली पकड़ना, कासकेड्स में बम्पिग झील में मछली पकड़ना। जहाँ भी मैं गया पानी का मँडराने वाला डर पीछे – पीछे लगा रहा । इसने मेरी मछली पकड़ने की यात्राएँ; डोंगी, बड़ी नाव खेने और तैरने की खुशी से मुझे वंचित कर दिया।

मैंने अपनी जानकारी में हर तरीका इस भय पर विजय पाने के लिए अपनाया पर इसने मुझे कसकर पकड़े रखा। अंततः एक अक्टूबर मास में मैंने तैरना सीखने के लिए एक शिक्षक नियुक्त करने का निर्णय किया। मैं एक ताल पर जाकर एक सप्ताह में पाँच दिन, प्रतिदिन एक घंटे तक अभ्यास करता। शिक्षक मेरे चारों ओर एक पेटी बाँध देता। बेल्ट से एक रस्सी बँधी होती जो एक पुली से होकर जाती जो सिर के ऊपर एक तार की रस्सी पर दौड़ती। वह रस्सी के किनारे को पकड़े रहता और हम आगे – पीछे जाते रहते। घंटे के बाद घंटा, दिन के बाद दिन, हफ्ते के बाद हफ्ता हम ताल में एक तरफ से दूसरी तरफ आगे – पीछे जाते रहे। ताल के आर – पार की हर यात्रा में कुछ भय मेरे मन में बना रहता। हर बार जब शिक्षक रस्सी पर अपनी पकड़ ढीली करता और मैं पानी के अंदर चला जाता, पुराने आतंक का कुछ अंश लौट आता और मेरी टांगें जम जातीं। मेरा तनाव कम होने में तीन महीने लग गए। तब उसने मुझे पानी के अंदर मुँह डालकर साँस छोड़ना सिखाया और नाक उठाकर साँस लेना। मैंने यह व्यायाम सैंकड़ों बार किया। धीरे – धीरे करके, उस घबराहट का एक भाग जाता रहा जो मुझे पानी के अंदर सिर डालने पर होती थी।

इसके बाद वह मुझे पूल के एक ओर पकड़े रहता और मुझ से पैर मारने को कहता। कई सप्ताह तक मैंने बस यही किया। पहले मेरी टाँगों ने काम करने से मना किया। लेकिन धीरे – धीरे वे तनाव रहित हो गईं और अन्त में मैं उन पर नियन्त्रण कर सका। इस प्रकार अनेक चरणों में, उसने मुझे एक तैराक बना दिया। और जब उसने हर भाग को त्रुटिरहित कर दिया, तब उसने उनको इकट्ठा करके सम्पूर्ण रूप प्रदान कर दिया। अप्रैल में उसने कहा, “अब तुम तैर सकते हो। डुबकी मारो तथा क्रॉल स्ट्रॉक से तैर कर पूल की पूरी लम्बाई पार करो।” मैंने यह कर लिया। प्रशिक्षक का काम पूरा हो गया।

जुलाई तक यही चलता रहा। पर मैं अभी तक संतुष्ट नहीं हुआ। मुझे विश्वास नहीं था कि सारा भय समाप्त हो गया था। अतः मैं न्यू हैंपशायर की लेक वैन्टबर्थ गया, ट्रग्स आयलैंड में डॉक से कूदा, और दो मील झील में तैरकर स्टैंप ऐक्ट आयलैंड पहुँचा। मैंने ब्रेस्ट स्ट्रोक, साइड स्ट्रोक और बैक स्ट्रोक को तैरने में प्रयोग किया। केवल एक बार आतंक लौटा। जब मैं झील के बीच में था मैंने जल में सिर डाला और मुझे अतल जल के अतिरिक्त कुछ न दिखा। पुरानी भावना छोटे रूप में लौट आयी। मैं हँसा और तेज बोला, “अच्छा, आतंक साहब, आपके ख्याल में आप मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं?‘ वह भाग गया और मैं तैरता हुआ आगे चला गया।

फिर भी मेरे मन में शक बाकी था। पहला अवसर मिलते ही मैं पश्चिम की ओर तेजी से चला, टीटन से ऊपर कोनार्ड मीडोज तक गया, कोनार्ड ग्रीक ट्रेल से मीडे ग्लेशियर तक और वार्म लेक के किनारे हाई मीडोज में कैंप डाला। अगले दिन प्रातः मैंने कपड़े उतारे, झील में गोता लगाया और तैरकर दूसरे किनारे तक पहुँचा और फिर तैरकर ही वापस आया - बिल्कुल वैसे डाक कार्पन किया करता था। मैं खुशी से चीख पड़ा और गिलवर्ट चोटी ने गूंजकर चीख दोहराई। मैं जल के भय पर विजय पा चुका था!

यह अनुभव मेरे लिए गहन अर्थ रखता था, जिन्होंने इस तरह के कठोर आतंक को समझा है और इसे जीता है, केवल वे ही इस अर्थ को समझ सकते हैं। मुत्यु में शान्ति होती है। केवल मृत्यु के भय में ही आतंक होता है, जैसा कि रुजवेल्ट जानते थे जब उन्होंने कहा था, ”हमें केवल भय से भयभीत होना पड़ता है।” क्योंकि मैंने मरने की अनुभूति और आतंक जो मृत्यु का भय उत्पन्न कर सकता है, दोनों का अनुभव किया था, इस कारण जीने की इच्छा किसी तरह अधिक तीव्र हो गई। अन्त में मैं मुक्ति का अनुभव करने लगा – पगडण्डियों पर चलने और चोटियों पर चढ़ने एवं भय को नकार देने हेतु स्वतन्त्र।