लेखक के बारे में

"The Tiger King" के लेखक कल्कि का जन्म 9 सितंबर 1899 को तंजावुर के पुट्टमंगलम में हुआ था। कल्कि एक प्रसिद्ध तमिल लेखक, फिल्म और संगीत समीक्षक, भारतीय निर्भरता कार्यकर्ता और तमिलनाडु के पत्रकार आर. कृष्णमूर्ति का पेन नेम था। 5 दिसंबर 1954 को उनका निधन हो गया।

    The Tiger King in Hindi
    Vistas Ch.2 - The Tiger King  (In Hindi: A Review of the Translation)

    -----I-----

    पढ़ने से पहले

    जंगली जानवरों के प्रति मनुष्य का सामान्य दृष्टिकोण क्या है?

    प्रतिबंदपुरम के महाराजा इस कहानी के नायक हैं। उनकी पहचान महामहिम जमीदार-जनरल, खिलदार-मेजर, सत व्याघ्र समहारी, महाराजाधिराज विश्व भुवन सम्राट, सर जिलानी जंग जंग बहादुर, एम.ए.डी., ए.सी.टी.सी., या सी.आर.सी.के के रूप में की जा सकती है। लेकिन यह नाम अक्सर The Tiger King के लिए छोटा कर दिया जाता है। मैं आपको यह बताने के लिए आगे आया हूं कि उन्हें The Tiger King क्यों कहा जाने लगा मेरा आगे बढ़ने का बहाना करने में ऐसा कोई इरादा नहीं है कि मैं नीतिगत रूप से पीछे हटूंगा। कोई स्तूक बमवर्षक की धमकी भी मुझे अपने मार्ग से नहीं हटायेगी। स्तूक, यदि चाहे तो शीघ्र से शीघ्र मेरी कहानी से पीछे हट सकता है

    शुरुआत में ही, The Tiger King के बारे में महत्वपूर्ण महत्व के मामले का खुलासा करना अनिवार्य है। हर कोई जो उन्हे पढ़ता है, उस अदम्य साहस के व्यक्ति से आमने-सामने मिलने की स्वाभाविक इच्छा का अनुभव होगा। लेकिन इसकी पूर्ति की कोई संभावना नहीं है। जैसा कि भरत ने राम से दशरथ के बारे में कहा था, बाघ राजा सभी जीवित प्राणियों के अंतिम निवास स्थान पर पहुंच गये है। दूसरे शब्दों में, The Tiger King मर चुका है।

    उनकी मृत्यु का ढंग असामान्य रुचि का है। इसका भेद केवल कहानी समाप्त होने पर ही खुल सकता है। उनकी मृत्यु का सबसे अनोखा पहलू यह था कि जैसे ही वह पैदा हुये, ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि एक दिन The Tiger King को वास्तव में मरना पड़ेगा।

    “बच्चा बड़ा होकर योद्धाओं का योद्धा बनेगा, वीरों का वीर बनेगा, विजेताओं का विजेता बनेगा। लेकिन………” उन्होंने अपने होंठ काट लिए और थूक निगला। जब भविष्यवक्ताओं को बाध्य किया गया तो उन्होंने यह बतलाया-“यह एक रहस्य है जिसे बिल्कुल भी प्रकट नहीं किया जाना चाहिए। और फिर भी हमें बोलने पर मजबूर किया गया है। जो बच्चा इस नक्षत्र में पैदा होता है उसे एक दिन मरना पड़ता है।”

    उसी क्षण एक महान् दैविक चमत्कार हुआ। उस दस दिन की आयु वाले जिलानी जंग जंग बहादुर के होंठों से एक आश्चर्यजनक वाक्यांश निकला, “ओ बुद्धिमान् संतो!” प्रत्येक व्यक्ति मूर्खता से जड़ होकर रह गया। उन्होंने एक-दूसरे की ओर ध्यान से देखा और आँखें मिचमिचाईं। “अरे बुद्धिमान भविष्यवक्ताओं ! यह मैं था जो बोला।”

    इस समय शंका के कोई आधार नहीं थे। यह वह बच्चा था जो दस दिन पहले पैदा हुआ था और इतनी स्पष्ट आवाज में बोल रहा था। प्रमुख ज्योतिषी ने अपना चश्मा उतारा और बच्चे को ध्यान से देखने लगा। “वे सभी जो पैदा होते हैं उन्हें एक दिन मरना ही होता है। हमें यह जानने के लिए आपकी भविष्यवाणियों की आवश्यकता नहीं है। इसमें कोई अर्थ हो सकता है यदि आप मृत्यु का तरीका बतला सकें,” शाही शिशु ने अपनी तुतली आवाज में इन शब्दों का उच्चारण किया।

    मुख्य ज्योतिषी ने अपनी अंगुली आश्चर्य से अपनी नाक पर रखी। केवल दस दिन का बच्चा बोलने के लिए अपने होंठ खोलता है वह केवल यह कह ही नहीं रहा, बुद्धिमत्तापूर्ण प्रश्न भी पूछ रहा है अविश्वसनीय जैसे कि युद्ध कार्यालय तथ्यों की बजाय समाचार जारी करता है। प्रमुख ज्योतिषी ने अपनी नाक से अंगुली हटाई और छोटे राजकुमार पर अपनी दृष्टि गड़ा दी।

    “राजकुमार वृषभ काल में पैदा हुये थे। वृषभ और बाघ शत्रु हैं, इसलिए, बाघ के द्वारा मृत्यु होगी,” उसने स्पष्ट किया। आप सोच सकते हैं कि राजमुकुट के उत्तराधिकारी राजकुमार जंग जंग बहादुर ने जब ‘बाघ’ शब्द सुना होगा तो वे कांप गये होगे। किन्तु वास्तव में ऐसा कुछ भी घटित नहीं हुआ। जैसे ही उन्होने यह ‘शब्द सुने उन्होने गुर्राहट भरी आवाज निकाली। उनके होंठों से भयभीत करने वाले शब्द निकले। “बाघो सावधान हो जाओ!” यह बात प्रतिबन्दपुरम् में फैली हुई एक अफवाह है। परन्तु घटित होने पर ही हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यह किसी न किसी सत्य पर आधारित थी। 

    -----II-----

    राजगद्दी का उत्तराधिकारी राजकुमार जंग जंग बहादुर दिन-प्रतिदिन लम्बे और शक्तिशाली होते गये। पूर्व में वर्णित घटना के अलावा उनके बचपन में कोई और चमत्कार नहीं हुआ। लड़का एक अंग्रेजी गाय का दूध पीता रहा, एक अंग्रेज धाय के द्वारा उसका पालन-पोषण किया गया, एक अंग्रेज अध्यापक के द्वारा उन्हे पढ़ाया गया, अंग्रेगी फिल्म के अलावा वे कुछ नहीं देखते थे- ठीक उसी प्रकार जैसे अन्य भारतीय राज्यों के सिंहासन के उत्तराधिकारी राजकुमार किया करते थे। जब वे बीस वर्ष के हुये तो राज्य की सत्ता जो तब तक उनके संरक्षकों के अधीन थी, उनके हाथों में आ गयी।

    लेकिन राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को ज्योतिषी की भविष्यवाणी याद थी। बहुत से लोगों ने इस विषय पर चर्चा करना आरंभ कर दी। धीरे-धीरे यह बात महाराजा के कानों तक पहुँची।

    प्रतिबन्दपुरम् राज्य में अनगिनत जंगल थे। उनमें बाघ थे। महाराजा पुरानी कहावत जानते थे, ‘आप आत्मरक्षा में गाय को भी मार सकते हैं।’ निश्चित रूप से आत्मरक्षा में बाघों को मारने पर कोई ऐतराज नहीं होगा। महाराजा ने बाघ का शिकार प्रारंभ कर दिया।

    महाराजा के रोमांच की कोई सीमा नहीं रही जब उन्होने पहला बाघ मारा । उन्होने राज्य के ज्योतिषी को बुला भेजा और उसे मरा हुआ जानवर दिखाया।

    “अब तुम क्या कहते हो?” उन्होने प्रश्न किया।

    “महाराजाधिराज ठीक इसी प्रकार से निन्यानवे बाघ और मार ले। लेकिन …….” ज्योतिषी ने बहुत मद्धम आवाज में कहा।

    “परन्तु क्या? भयमुक्त होकर कहो।”

    “किन्तु आपको सौवें बाघ से सतर्क रहना पड़ेगा।”

    “जब सौवाँ बाघ भी मार गिराया जाएगा तब क्या होगा?”

    “तब मैं अपनी तमाम ज्योतिष की पुस्तकें फाड़ डालूँगा, उनको आग लगा दूँगा, और….’

    “और………..’’

    “मैं अपनी चोटी काट लूँगा, अपने बाल छोटे करवा लूँगा और बीमा अभिकर्ता बन जाऊँगा,” ज्योतिषी ने बेढंगेपन से बात समाप्त की।

    -----III-----

    उस दिन से लेकर प्रतिबन्धपुरम में रहने वाले व्याघ्रों के लिए उत्सव का समय आ गया। राज्य ने महाराजा के सिवाय किसी के भी द्वारा व्याघ्र के शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस आशय से एक घोषणा जारी की गई कि यदि किसी ने किसी व्याघ्र पर एक पत्थर तक उछालने का साहस किया तो उसकी समस्त धन-सम्पत्ति जब्त कर ली जायेगी।

    महाराजा ने शपथ ली कि वह सौ व्याघ्रों को मारने के बाद ही अन्य सभी विषयों पर ध्यान देंगे। प्रारम्भ में राजा अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए दृढ़ निश्चयी प्रतीत हए। ऐसा नहीं था कि उन्हें किसी खतरे का सामना नहीं करना पड़ता था। कई बार गोली का निशाना चूक जाता था, व्याघ्र उन पर छलांग लगा देता था और वह निहत्थे उस जंगली-जानवर से लड़ते थे। परन्तु प्रत्येक बार महाराजा की ही विजय होती थी।

    एक बार तो उनके सामने अपना राजसिंहासन छिनने का खतरा पैदा हो गया पदासीन ब्रिटिश अधिकारी प्रतिबन्धपुरम में आया। वह व्याघ्रों का शिकार करने का बहुत शौकीन था। और अपने द्वारा मारे गये व्याघ्रों के साथ फोटो खिंचवाने का तो उसे और भी अधिक शौक था। हमेशा की तरह उसने प्रतिबन्धपरम में व्याघ्रों का शिकार करने की इच्छा प्रकट की। लेकिन महाराजा अपने निश्चय पर अटल थे। उन्होंने अनुमति देने से मना कर दिया“मैं किसी अन्य शिकार का प्रबंध कर सकता हूँ। आप किसी जंगली सुअर का शिकार कर सकते हैं। आप चूहे का शिकार कर सकते है। हम मच्छर के शिकार के लिए भी तैयार है परंतु व्याघ्र का शिकार! यह असम्भव है

    अंग्रेज अधिकारी के सचिव ने दीवान के माध्यम से महाराजा को एक संदेश पहुँचाया कि ‘दुराय’ स्वयं बाघ का शिकार नहीं करेगा। वास्तविक शिकार महाराजा खुद कर सकते हैं। दुराय के लिए महत्त्वपूर्ण बात मृत बाघ के पास खड़े होकर हाथ में बन्दूक लिए हुए फोटो खिंचवाना है। लेकिन महाराजा इस प्रस्ताव पर भी सहमत नहीं हुए। यदि अब वह सहमत हो जाते हैं तो वे क्या करेगे जब अन्य ब्रिटिश अधिकारी बाघ के शिकार के लिए आग्रह करेंगे? क्योंकि उन्होने एक ब्रिटिश अधिकारी को उसकी इच्छा पूर्ण करने से रोका था, महाराजा के सामने अपना राज्य खोने का खतरा खड़ा हो गया।

    महाराजा और दीवान ने इस विषय पर कई मंत्रणाएँ कीं। परिणामस्वरूप कलकत्ता की एक सुप्रसिद्ध ब्रिटिश जवाहरात कम्पनी के पास एक तार भेजा गया। ‘भिन्न-भिन्न डिजाइन की हीरे जड़ित मूल्यवान अंगूठियों के नमूने भेजो।’ लगभग पचास अंगूठियाँ आ पहुँचीं। महाराजा ने ये सारी अंगूठियाँ अंग्रेज अधिकारी की पत्नी के पास पहुँचा दीं। राजा और मंत्री को आशा थी कि दुरायसनी एक या दो अंगूठियों का चुनाव कर शेष को वापस लौटा देगी। बहुत शीघ्र ही दुरायसनी ने अपना जवाब भेज दिया : ‘आपके उपहारों के लिए बहुत धन्यवाद।

    दो दिन के अन्दर ब्रिटिश जौहरियों के यहाँ से तीन लाख रुपए का बिल आ गया। महाराजा प्रसन्न थे यद्यपि उसने तीन लाख रुपये का नुकसान उठाया, किन्तु उसने अपने राज्य को बचाने में सफलता प्राप्त कर ली।

    -----IV-----

    महाराजा के व्याघ्रों के शिकार बहुत सफल होते रहे। दस वर्ष में वे सत्तर व्याघ्र मार पाए। और फिर एक नई रुकावट ने उनके अभियान को रोक दिया। प्रतिबन्धपुरम के जंगलों में व्याघ्रों की जनसंख्या लुप्त हो गई। कौन जाने व्याघ्रों ने परिवार नियोजन अपनाया या अपमान से बचने के लिए आत्महत्या कर ली? या फिर बस उस राज्य से भाग गये क्योंकि वे अंग्रेजों के ही हाथों मरना चाहते थे।

    एक दिन महाराजा ने दीवान को बुलाया। “दीवान साहब, क्या आप इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि मेरी इस बन्दूक द्वारा तीस बाघ और मारे जाने शेष हैं?” उसने गुस्से में अपनी बन्दूक हवा में घुमाते हुए पूछा। बन्दूक के डर से कांपते हुए दीवान चिल्लाया, “महाराजाधिराज, मैं बाघ नहीं हूँ!”

    “कौन बेवकूफ तुम्हें बाघ कहेगा।” “नहीं, और मैं बन्दूक नहीं हूँ!” आप न तो बाघ हैं और न बन्दूक हैं। दीवान साहिब, मैंने आपको यहाँ एक भिन्न उद्देश्य के लिए बुलाया। मैंने शादी करने का निश्चय किया है।” दीवान और भी अधिक बड़बड़ाने लगा। “महाराजाधिराज, मेरे पहले से ही दो पत्नियाँ हैं। यदि मैं आपसे शादी कीं…” “मूर्खता की बातें मत करो! मैं आपसे शादी क्यों करूँगा? मुझे तो बाघ चाहिये…….” “महाराजाधिराज! कृपया आप इस पर विचार कीजिए! आपके पूर्वजों ने तलवार से शादी की। यदि आप चाहें तो बन्दूक से शादी कर लें। इस राज्य के लिए एक Tiger King ही काफी है। इसके लिए एक Tiger Queen नहीं चाहिए!”

    महाराज जोर से खिलखिला कर हँसने लगे। “मैं बाघ या बन्दूक से शादी करने की नहीं सोच रहा हूँ, परन्तु मानव जाति की एक लड़की से शादी करने की सोच रहा हूँ। सर्वप्रथम तुम अलग-अलग पड़ोसी राज्यों में बाघों की जनसंख्या के आँकड़े इकट्ठे करो। इसके बाद तुम खोजो कि क्या किसी राजपरिवार की शाही लड़की है जिससे मैं शादी करूँ जिस राज्य में सबसे ज्यादा बाघ हों।”

    दीवान ने उसके आदेशों का पालन किया। उसे एक ऐसे राज्य की सही लड़की मिल गई जिस राज्य में बाघों की विशाल जनसंख्या थी। प्रत्येक बार जब भी महाराजा जंग जंग बहादुर अपने श्वसुर के पास जाते पाँच या छ: बाघ मार देते थे। इस प्रकार प्रतिबन्दपुरम् के महल के स्वागत कक्ष में निन्यानवे बाघों की खालें सुशोभित हो गईं। 

    -----V-----

    महाराजा की चिन्ता उस समय अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी जब उनकी सौ बाघों की गणना में केवल एक शेष रह गय। वे दिनभर केवल इसी बात पर विचार करते थे और रात को सपना देखते थे। इस समय तक बाघों के क्षेत्र बाघविहीन हो गए यहाँ तक कि उसके ससुर के राज्य में भी। कहीं भी बाघ का पता लगाना असंभव हो गया। केवल एक बाघ की अभी और आवश्यकता थी। यदि वह एक जानवर को और मार दे तो महाराज भयमुक्त हो जाएंगे। साथ ही वह बाघ का शिकार भी त्याग देंगे। किन्तु उन्हे इस अन्तिम बाघ से बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता थी। अन्तिम स्वर्गीय प्रधान ज्योतिषी ने क्या कहा था? “निन्यानवे बाघों को मारने के बाद भी सौवें बाघ से महाराजा को बहुत सावधान रहना चाहिए।” पर्याप्त सत्य। आखिरकार बाघ एक जंगली जानवर था। प्रत्येक को इसका ध्यान रखना चाहिए। लेकिन यह सौवाँ बाघ कहाँ मिलने वाला था? बाघ का दूध प्राप्त करना एक जिन्दा बाघ प्राप्त करने से ज्यादा आसान दिखायी देता था। इस प्रकार महाराजा उदासी में डूब गए। लेकिन शीघ्र ही प्रसन्नता का समाचार मिला जिससे महाराजा की निराशा दूर हो गयी। पहाड़ी के बगल के गाँव में महाराजा के राज्य में लगातार भेड़ें गायब होने लगीं। पहले यह पता लगाया गया कि यह काम खादेर मियां साहिब या वीरा सामी नाइकर का तो नहीं था, दोनों ही पूरी की पूरी भेड़ों को निगल जाने की अपनी योग्यता के लिए प्रसिद्ध थे। निश्चय ही कोई बाघ अपना काम कर रहा था। गाँव वाले महाराजा को सूचित करने के लिए दौड़ पड़े। महाराजा ने उस गाँव का तीन साल का लगान माफ करने की घोषणा की और तुरंत ही शिकार के लिए प्रस्थान कर दिया।

    बाघ आसानी से नहीं मिला। ऐसा दिखायी देता था मानो उसने चंचलता से महाराजा की इच्छा पूरी करने से इनकार करने हेतु अपने आपको कहीं छिपा लिया। महाराजा ने भी समान रूप से दृढ़ निश्चय कर रखा था। उसने भी बाघ के मिलने तक जंगल छोड़ने से इनकार कर दिया। ज्यों-ज्यों दिन बीतते चले गए महाराजा का गुस्सा और जिद बढ़ती चली गयी। बहुत से अधिकारियों की नौकरी चली गई।

    एक दिन जब महाराजा का गुस्सा चरम पर था, महाराजा ने दीवान को बुलवाया और उसे तुरन्त लगान दुगुना करने का आदेश दिया। “लोग असंतुष्ट हो जायेंगे। तब हमारा राज्य भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का शिकार बन जाएगा।” “उस अवस्था में तुम अपने पद से त्यागपत्र दे सकते हो” राजा ने कहा। दीवान इस बात को सोचता हुआ घर चला आया कि यदि महाराजा को शीघ्र ही बाघ नहीं मिला तो परिणाम संकट उत्पन्न करने वाले होंगे। उसकी जान में जान तब आई जब उसने मद्रास के जन-उद्यान से लाये गये उस बाघ को देखा जो उसके घर में छिपाकर रखा गया था। आधी रात को जब शहर शांतिपूर्वक सोया हुआ था तो दीवान और उसकी अधेड़ उम्र की पत्नी ने बाघ को कार तक घसीटा और जबरदस्ती सीट पर ठूँस दिया। दीवान स्वयं कार को चला कर जंगल तक ले गया जहाँ महाराज शिकार पर थे। जब वे जंगल में पहुंचे तो बाघ ने सत्याग्रह शुरू कर दिया और कार से बाहर निकलने से मना कर दिया। दीवान ने बाघ को कार से घसीट कर बाहर निकालने में अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी और उसे जमीन पर धकेल दिया।

    अगले दिन वही वृद्ध व्याघ्र घूमता-फिरता महाराजा के सामने आ गया और मानो विनम्र प्रार्थना के भाव से खडा हो गया “मालिक आपका मेरे लिए क्या आदेश है?” महाराजा ने असीम आनन्द के साथ उस जंगली जानवर पर सावधानीपूर्वक निशाना साधा। व्याघ्र एक कुचले हुए ढेर के रूप में गिर पडा। महाराजा अत्यधिक खुशी व उत्तेजना के अधीन होकर बोले, “मैंने सौवें व्याघ्र को मार दिया है। मेरी शपथ पूरी हो गई है।” उस व्याघ्र को एक भव्य जुलूस के साथ राजधानी में लाये जाने का आदेश देकर महाराजा शीघ्रता से अपनी कार में चले गये।

    महाराजा के जाने के बाद, शिकारी बाघ को नजदीक से देखने गए। बाघ ने व्याकुलता से उनकी तरफ आँखें घुमाकर देखा। आदमियों ने महसूस किया कि बाघ मरा नहीं था; गोली अपना निशाना चूक गयी थी। वह केवल गोली के समीप से गुजरने की तीव्र ध्वनि से बेहोश हो गया था। शिकारी हैरान थे कि अब क्या किया जाये। उन्होंने निश्चय किया कि महाराजा को यह मालूम नहीं होना चाहिए कि उनका निशाना चूक गया था। यदि वे ऐसा करते तो अपनी नौकरी गँवा सकते थे। उनमें से एक शिकारी ने एक फुट की दूरी से निशाना साधा और बाघ को गोली मार दी। इस समय उसने बिना निशाना चूके उसे मार डाला था। तब जैसा कि महाराजा का आदेश था, मरे बाघ को कस्बे में लाया गया और दफना दिया गया। उसके ऊपर एक मकबरा बना दिया गया।

    कुछ दिन बाद महाराजा के पुत्र का तीसरा जन्मदिन मनाया गया। उस समय तक महाराजा ने अपना पूरा ध्यान व्याघ्रों के शिकार पर लगाया हुआ था। उनके पास युवराज के लिए समय नहीं था। लेकिन अब राजा ने अपना ध्यान बच्चे की ओर मोड़ा। उन्होने अपने बच्चे के जन्मदिन पर कोई खास उपहार देना चाहा। वह प्रतिबन्धपुरम के शॉपिंग सेन्टर में गये और प्रत्येक दुकान पर खोजा लेकिन उन्हे कोई उपयुक्त उपहार नहीं मिल पाया। अन्त में उनकी नजर एक खिलौनों की दुकान में एक लकड़ी के व्याघ्र पर पड़ी और उन्होने निश्चय किया कि यह बिल्कुल उपयुक्त उपहार है। लकड़ी के बाघ की कीमत केवल सवा दो आना थी। लेकिन दुकानदार जानता था कि यदि वह इतनी कम कीमत महाराजा को कहेगा तो वह राजकीय कानून के अनुसार दण्डित किया जायेगा। इसलिए उसने कहा, “महाराज, यह शिल्प कला का एक अद्भुत नमूना है और इसका मूल्य तीन सौ रुपए है।” “बहुत अच्छा। यह तुम्हारी तरफ से सिंहासन के उत्तराधिकारी राजकुमार को उसके जन्मदिन पर भेंट दिया जाएगा,” राजा ने कहा और उसे अपने साथ ले गया। उस दिन पिता और पुत्र उस छोटे से लकड़ी के बाघ के साथ खेल रहे थे। यह एक अकुशल कारीगर द्वारा तराशा गया था। इसका सतह बहुत खुरदरा था, लकड़ी के छोटे-छोटे रेशे कांटे की तरह इसके चारों ओर निकले थे। उनमें से एक रेशा महाराज के दाहिने हाथ में चुभ गया। उन्होने इसे अपने बाएँ हाथ से खींच कर बाहर निकाल दिया और राजकुमार के साथ फिर से खेलने लगे।

    अगले ही दिन, महाराजा के दाहिने हाथ में संक्रमण फैल गया। चार दिनों में ही यह एक मवाद वाला घाव बन गया जो उनके सारे हाथ में फैल गया। मद्रास से तीन प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक बुलाए गए। आपस में विचार-विमर्श करने के बाद उन्होंने शल्य चिकित्सा करने का निश्चय किया। शल्य चिकित्सा आरंभ हो गई। तीन शल्य चिकित्सक जिन्होंने शल्य चिकित्सा की थी, शल्य चिकित्सा कक्ष से बाहर निकले और घोषणा की, “ऑपरेशन सफल रहा। महाराज मर गये हैं।” इस प्रकार सौवें बाघ ने अन्त में बाघ राजा से बदला ले लिया।