लेखक के बारे में

अल्फोंस डौडेट (1840-1897 ) एक फ्रांसीसी उपन्यासकार एवं लघु-कथा लेखक थे। The Last Lesson कहानी फ्रांस और प्रशिया के बीच युद्ध के दिनों की है जिसमें बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशिया ने फ्रांस को हरा दिया था। उस जमाने का प्रशिया आज के जर्मनी, पोलैण्ड और ऑस्ट्रिया के कुछ हिस्सों से मिलकर बना था। इस कहानी में फ्रांस के अल्सास तथा लॉरेन जिले प्रशिया के अधीन हो गए हैं। यह जानने के लिए कहानी पढ़िये कि विद्यालयी जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा।

    The Last Lesson हिन्दी अनुवाद-
    The Last Lesson  (in Hindi: A Review of the Translation)

    उस सुबह मैं स्कूल के लिए काफी देर से रवाना हुआ था. तथा मुझे डाँट-डपट पड़ने का अत्यधिक भय था, विशेष रूप से इसलिए, क्योंकि एम. हेमल ने कहा था कि, वह हमें “पाटिसिपल्ज” पर प्रश्न करेंगे. और मैं तो इनका पहला शब्द भी नहीं जानता था। एक क्षण के लिए मैंने भाग जाने, तथा घर से बाहर दिन गुजारने के बारे में सोचा। मौसम गरमाहट से भरा, तथा स्वच्छ था। जंगल के किनारे पक्षी चहचहा रहे थे; तथा आरा-मशीन के पीछे खुले खेत में, प्रसिआ के सिपाही ड्रिल कर रहे थे। यह सब “पाटिसिपल्ज” के नियमों की तुलना में अधिक आकर्षक थे, लेकिन मुझ में प्रतिरोध करने की क्षमता थी, और मैं स्कूल की ओर तेज गति से चल पड़ा। 

    जब मैं टाउन हाल के निकट से गुजरा, तो नोटिस बोर्ड के सामने भीड थी। पिछले दो वर्षों से हमारे सारे बुरे समाचार, यहीं से आये थे। हारे हुए यद्ध, सेना में सिपाहियों की भर्ती, सैनिक अधिकारी के आदेश। और बिना रुके मैंने मन ही मन सोचा, “अब क्या मामला हो सकता है?”

    फिर, जब मैं उतनी ही तीव्र गति से जा रहा था, जितनी तेज गति से मैं चल सकता था, तब वॉकर लुहार, जो वहाँ अपने शिष्य के साथ था और समाचार पढ़ रहा था, ने मेरे पीछे से चिल्लाकर कहा, “इतने तेज मत चलो, लड़के; अभी स्कूल पहुँचने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त समय है।” मैंने सोचा वह मेरा मज़ाक उड़ा रहा था, और मैं एम. हेमल के छोटे से बगीचे पर हाँफता हुआ जा पहुंचा।

    सामान्यतया, जब स्कूल शुरू होता था, वहाँ अत्यधिक शोर-शराबा एवं हलचलें होती थीं जिसे बाहर गली में सुना जा सकता था, डेस्कों का खुलना एवं बन्द होना, एक स्वर में पाठों को दोहराया जाना, ऊँचे स्वर में, हमारे हाथ हमारे कानों पर रखे हुए ताकि हम बेहतर समझ सकते तथा अध्यापक का डरावना डंडा मेज पर खटखटाता हुआ। लेकिन अब यह सब इतना शान्त था! मैंने अपनी मेज तक बिना किसी के देखे पहुँच जाने हेतु इस शोर पर ही भरोसा किया था, लेकिन उस दिन तो प्रत्येक चीज रविवार की सुबह समान शान्त था। खिड़की में से मैंने अपने सहपाठियों को देखा, जो पहले ही अपने-अपने स्थानों पर बैठे थे, तथा एम. हेमल अपनी बाँह के नीचे अपने भयानक डंडे को रखे कक्षा में इधर से उधर घूम रहे थे। मुझे दरवाजा खोलना था और सभी के समक्ष कमरे में प्रवेश करना था। आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं कैसा शर्मिन्दा और डरा हुआ था। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। एम. हेमल ने मुझे देखा और बड़ी दयालुता के साथ बोले, “अपने स्थान पर जल्दी से जाओ, छोटे-फ्रांज। हम तुम्हारे बिना ही पाठ शुरू करने वाले थे।”

    मैंने अपनी बेंच के ऊपर से छलांग लगाई, तथा अपनी डेस्क के पास जा बैठा। जब मैंने अपने भय पर थोड़ा नियन्त्रण पा लिया, तब तक मैंने यह नहीं देखा था कि, हमारे अध्यापक ने उसका सुन्दर हरे रंग का कोट, उसकी झालरदार कमीज तथा, छोटी-सी काली रेशमी टोपी पहन रखी थी, जिस पर सभी तरफ कढ़ाई का काम किया हुआ था। इसे वह निरीक्षण, तथा पुरस्कार वितरण के दिनों के अलावा कभी नहीं पहनते थे। इसके अतिरिक्त, सारा स्कूल ही काफी अजीब एवं गम्भीर प्रतीत हो रहा था। किन्तु जिस चीज ने मुझे सर्वाधिक आश्चर्यचकित किया वह थी, पीछे की बैन्चों पर, जो हमेशा खाली रहा करती थी, गाँव के लोगों का हमारे ही समान चुपचाप बैठे होना। ये थे- बूढा होसर जो अपना तिकोना टोप पहने था, भूतपूर्व मेयर, भूतपर्व पोस्ट-मास्टर तथा इनके अतिरिक्त कई दूसरे। प्रत्येक व्यक्ति उदास दिखाई दे रहा था, तथा होसर एक पुरानी प्रथम पुस्तिका लाया था जो किनारों पर, अंगूठों से पन्ने पलटे जाने के कारण, गंदी हो चुकी थी और वह इसे अपने भारी-भरकम चश्मे की मदद से, जो पन्नों के ऊपर रखा था, अपने घुटनों पर रखे हुए खोले था।

    जब मैं इस सबके बारे में आश्चर्य कर रहा था, एम. हेमल अपनी कुर्सी पर बैठ गये तथा उसी विनम्र एवं गम्भीर स्वर में, जो उन्होंने मेरे लिए प्रयोग किया था, कहा, “मेरे बच्चो, यह आखिरी पाठ (The Last Lesson) है जो मैं तुम्हें पढ़ाऊँगा। बर्लिन से आदेश आया है कि, अलसेक तथा लॉरेन के स्कूलों में केवल जर्मन भाषा ही पढ़ाई जानी है। नये अध्यापक कल आ जायेंगे। यह तुम्हारा फ्रेंच भाषा का आखिरी पाठ है। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी बात बहुत ध्यान से सुनो।

    ये शब्द मेरे लिए बिजली की कडकडाहट के समान थे। अरे, वे दुष्ट लोग; यही बात तो उन्होंने टाउन-हॉल के सूचना-पट्ट पर लगाई थी! मेरा आखिरी फ्रेंच भाषा का पाठ! अरे, मैं तो लिखना भी मुश्किल से ही जानता था। अब मैं आगे और कुछ भी न सीख सकूँगा! तब, मुझे वहीं रुक जाना होगा! अरे, मैं कितना दु:खी था कि मैंने अपने पाठ नहीं सीखे थे, कि मैं पक्षियों के अण्डे तलाशता रहता था अथवा सार नदी पर फिसलने के लिए चला जाता था! मेरी पुस्तकें जो कुछ समय पूर्व ही मुझे मुसीबत लगती थीं, उठाकर चलने में इतनी भारी-भरकम, मेरी व्याकरण की पुस्तक तथा संतों के इतिहास की मेरी पुस्तक, अब मेरी पुरानी मित्र लग रही थीं जिन्हें मैं त्याग नहीं सकता था। तथा एम. हेमल भी; इस विचार ने कि अब वह जा रहे थे, कि अब मैं उन्हे पुन: कभी न देख सकूँगा, मुझे उनके डंडे तथा वह कितना सनकी थे, को भूलने को बाध्य कर दिया।

    बेचारा! इस आखिरी पाठ के सम्मान में ही तो, उन्होंने अपने रविवार के अच्छे वस्त्र पहने थे, और अब – मैं समझ गया था कि, गाँव के वृद्ध लोग कमरे में पीछे की ओर क्यों बैठे हुए थे। ऐसा इसलिए था कि वे भी दु:खी थे कि, वे स्कूल में और अधिक क्यों नहीं गये थे। यह इन लोगों का हमारे अध्यापक को, उसकी चालीस वर्ष की निष्ठापूर्ण सेवा के लिए धन्यवाद देने का, तथा अपने देश के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का, जो देश अब उनका नहीं रह गया था, एक तरीका था।

    जब मैं इस सबके बारे में सोच रहा था तो मैंने अपना नाम पुकारे जाते हुए सुना। अब सुनाने की मेरी बारी थी। मैं पर्तिसिपल के उस भयानक नियम को शुरू से अन्त तक, ऊँची एवं स्पष्ट आवाज में, बिना कोई गलती किए सुनाने के योग्य होने के लिए क्या कुछ करने को तैयार न था। लेकिन मैं तो प्रथम शब्दों पर ही उलझ गया और वहीं खड़ा रह गया, अपनी डेस्क को पकड़े हुए, मेरा दिल जोर से धड़कते हुए और ऊपर देखने का साहस न जुटाते हुए।

    मैंने एम. हेमल को मुझसे कहते हुए सुना, “मैं तुम्हें डॉदूंगा नहीं, छोटे-से फ्रांज; तुम्हें तो अवश्य बुरा लग रहा होगा। देखो, बात ऐसी है! हम लोगों ने रोज स्वयं से कहा है, “आह! मेरे पास काफी समय है। मैं इसे कल सीख लूँगा।” अब देखो, हम कहाँ आ पहुँचे हैं। अरे, अलसेक के साथ (यहाँ के लोगों के साथ) यही परेशानी है; यहाँ के लोग अपनी पढ़ाई को आने वाले कल पर छोड़ देते हैं। अब वे बाहर के लोग तुम से यह कहने का अधिकार रखेंगे, “ऐसा क्यों है: तुम फ्रान्सीसी होने का दावा करते हो, लेकिन फिर भी तुम अपनी भाषा को न तो बोल सकते हो और न ही लिख सकते हो।” लेकिन तुम सबसे खराब नहीं हो, छोटे-से फ्रांज। हम सबके पास स्वयं को धिक्कारने के लिए बहुत सारा कारण है।”

    “तुम्हारे माता-पिता पर्याप्त रूप से उत्सुक नहीं थे कि तुम सीख, पढ़ सको। उन्होंने तुम्हें खेतों अथवा मिलों पर काम करने के लिए रख देने को अधिक पसन्द किया, ताकि कुछ अधिक पैसा प्राप्त किया जा सके। और मैं? मैं भी दोषी हूँ। क्या मैंने तुम्हें मेरे फूलों के पौधों को पानी देने प्राय: नहीं भेजा है, बजाय अपने पाठ याद करने के? और जब मैंने मछली पकड़ने के लिए जाना चाहा तो क्यों मैंने तुम्हारी छुट्टी ही नहीं कर डाली?”

    फिर, एक चीज से दूसरी चीज पर चर्चा करते हुए, एम. हेमल फ्रेन्च भाषा के बारे में बात करते रहे, वह यह कहते रहे कि यह दुनिया की सबसे सुन्दर भाषा था- सर्वाधिक स्पष्ट, सर्वाधिक तर्क-संगत, कि हमें इसकी हमारे बीच सुरक्षा अवश्य करनी चाहिए तथा इसे कभी नहीं भुलाना चाहिए, क्योंकि जब लोग गुलाम बना लिये जाते हैं, तो जब तक वे अपनी भाषा से पक्की तरह जुड़े रहते हैं तब तक उनके लिए उनकी भाषा जेल से बाहर निकलने की चाबी सिद्ध होती है। फिर उसने व्याकरण की एक पुस्तक खोली और हमारा पाठ पढ़ कर हमें सुनाया। मैं यह देख कर इतना अचम्भित था कि मैं इसे कितनी अच्छी तरह समझ गया था। जो कुछ उसने कहा वह कितना सरल लगा, कितना सरल! मैं यह भी सोचता हूँ कि मैंने कभी भी इतने ध्यान से नहीं सुना था और कि उन्होने भी हर चीज को इतने धैर्य से कभी नहीं समझाया था। ऐसा लगता था जैसे कि वह बेचारा हमें वो सब जो वह जानते थे, जाने से पूर्व दे देना चाहते है और इस सबको हमारे दिमागों में एक ही बार में डाल देना चाहते है।
    ग्रामर के बाद हमारा लेखन का पाठ हुआ। उस दिन एम. हेमल हमारे लिए नई कॉपियाँ लाये थे, जिन पर सुन्दर एवं गोल हस्तलेख में लिखा था-फ्रांस, अलसेक, फ्रान्स, अलसेक। वे छोटे छोटे झंडों की भाँति दिखाई दे रहे थे जो स्कूल के कमरे में सर्वत्र लहरा रहे थे और हमारी डेस्कों के ऊपर लगी छड़ों से लटके हुए थे। आपको देखना चाहिए था कि किस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति काम में लगा था और कैसी शान्ति छायी हुई थी। एक मात्र आवाज थी, कागज पर पैनों के रगड़े जाने की। एक बार कुछ भौंरे उड़कर अन्दर आ गये; लेकिन किसी ने भी उन पर ध्यान नहीं दिया, सबसे छोटे बच्चों ने भी नहीं, जो मछली पकड़ने के कांटों के चित्र खींचने में लगे थे, जैसे इन चित्रों को खींचना भी फ्रेंच भाषा हो। छत पर कबूतर धीमे स्वर में गुटरगूं कर रहे थे, और मैंने मन ही मन सोचा, “क्या वे कबूतरों को भी जर्मन भाषा में गाने को बाध्य करेंगे?”

    जब भी मैंने लिखते हुए ऊपर की ओर देखा, मैंने एम. हेमल को बिना हिले-डुले उनकी कुर्सी पर बैठे देखा, कभी एक वस्तु की ओर टकटकी लगाकर देखते हुए, फिर दूसरी वस्तु की ओर, जैसे कि वह अपने दिमाग में यह अंकित कर लेना चाहते है कि उस छोटे-से स्कूल के कमरे में प्रत्येक वस्तु कैसी दिखाई देती थी। जरा सोचो! चालीस वर्षों से वह उसी स्थान पर थे, खिड़की से बाहर उनका बगीचा था तथा उसके समक्ष उनकी कक्षा थी, सदैव ऐसा ही। केवल डेस्कें तथा बैंचें घिस-घिस कर चिकनी हो गयी थीं; बगीचे में अखरोट के वृक्ष पहले की अपेक्षा अधिक ऊँचे थे तथा जो होपवाइन (एक प्रकार की लता) जिसे उन्होंने स्वयं लगाया था, खिड़कियों से लिपट कर छत तक पहुँच गयी थी। इस सब को छोड़ कर जाने की बात ने तो उनका दिल ही तोड़ दिया होगा, बेचारा; साथ में ऊपर के कमरे में उनकी बहन की इधर-उधर चलने और सामान को बाँधने की आवाज सुनना ! क्योंकि उन्हें तो अगले ही दिन देश छोड़ कर जाना होगा।

    किन्तु उनमें इतना साहस था कि वह प्रत्येक पाठ को अन्त तक सुन सकते थे। लेखन के बाद हमारा इतिहास का पाठ हुआ। और फिर बच्चों ने स्वर के साथ अपना बा, बे, बी, बो, बु बोला। कमरे के पिछले हिस्से में बूढ़े हासर ने अपना चश्मा लगा लिया था तथा अपनी प्रथम पुस्तक को दोनों हाथों में पकड़े हुए बच्चों के साथ अक्षरों को बोल रहा था। आप देख सकते थे कि वह भी रो रहा था; उसकी आवाज भावुकता के कारण काँप रही थी और उसकी आवाज सुनना हम सबको इतना मजेदार लगा कि हम सब हँसना और रोना चाहने लगे। अरे, मुझे कितनी अच्छी प्रकार याद है, वह आखिरी पाठ!

    अचानक चर्च की घड़ी ने बारह बजा दिए। इसी क्षण प्रशियनों के तुरही हमारी खिडकियों के नीचे बज उठे। ये प्रशियन सिपाही अपनी ड्रिल करने के बाद वापस लौट रहे थे। एम. हेमल कुर्सी से उठ खडा हुये, बहुत पीला पड़े हुये। मैंने उन्हें इतना लम्बा पहले कभी नहीं देखा था।

    “मेरे मित्रो”, वह बोले, “मैं-मैं- किन्तु किसी चीज ने उसका गला अवरुद्ध कर दिया। वह आगे नहीं बोल सके।

    फिर वह ब्लेकबोर्ड की ओर मुड़े, चाक का एक टुकड़ा लिया तथा अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग करते हुए, उन्होने जितना बड़ा लिख सकते था, लिखा :’

    “फ्रान्स जिन्दाबाद!”

    फिर वह रुके तथा उन्होंने अपना सिर दीवार से सटा दिया, और बिना एक भी शब्द बोले, उन्होने हमें अपने हाथ से इशारा किया...

    “स्कूल समाप्त हुआ—आप लोग जा सकते हैं।”